Wednesday 6 April 2016

बैठे बिठाये

जरूर दर्द का जहर चखा है उसने....
लहजे में तल्खी टपकती है अब भी||

आग सीने मेँ है तुम तपन देखते हो। वो खाली दिल तुम बदन देखते हो। क्यूँ परेशां हैँ मेरी आंखेँ दीदार को, हर्फ तौले हुए हैँ और तुम वज़न देखेते...